"शमी वृक्ष" की विशेषता व महत्वपूर्ण जानकारी
शमी का महत्व
शमी (Prosopis cinerea) भारत में पाई जाने वाली सबसे आम वृक्ष प्रजातियों में से एक है। खेजड़ी को संस्कृत में शमी वृक्ष कहा जाता है यह राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, पंजाब और मध्य प्रदेश के शुष्क क्षेत्रों में तथा कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार उत्तर प्रदेश) भारत के आलावा नेपाल, अफगानिस्तान, ईरान, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात और पाकिस्तान में भी होती है। शमी वृक्ष मुख्य रूप से थार रेगिस्तान में शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह वृक्ष ठण्ड और सूखा प्रतिरोधी होने के कारण गर्मियों में 45 -50 °C से लेकर सर्दियों में 5 -7 °C से भी कम तापमान को सहन करता है। पेड़ सबसे गर्म हवाओं, सबसे शुष्क मौसम का सामना कर सकता है तथा सर्दी में पाला में भी जीवित रह सकता है। शमी वृक्ष का उपयोग औषधीय महत्व के लिए किया गया है और हाल ही में इसे भारत में संरक्षित पेड़ों की सूची में जोड़ा गया है। वास्तव में इसे भारत का पवित्र वृक्ष कहा जाता है।
खेजड़ी, शमी (प्रोसोपिस सिनेरिया) राजस्थान राज्य में सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से अत्यधिक महत्व रखता है। शमी वृक्ष/खेजड़ी वृक्ष ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। शमी/खेजड़ी का वृक्ष अत्यधिक गर्मी के महीने (जेठ के महीने) में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब शमी का पेड़ ही छाया देता है। शमी वृक्ष की जड़ों के फैलने से भूमि का कटाव नहीं होता है। इसकी जड़ों में रेत जमी रहती है, जिससे मरुस्थल का फैलाव रुक जाता है।
राजस्थान के जिलों में खेजड़ी को कई स्थानीय नामों से जाना जाता है, लोकप्रिय रूप से इसे खेजड़ी या खेजड़ा कहा जाता है। इसे अलवर, सीकर, झुंझुनू, चुरू, जयपुर, भरतपुर, करोली, धौलपुर, उदयपुर के सामल गांव और राजस्थान के बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों जैसे क्षेत्रों में जांट या जांटी भी कहा जाता है। यह वृक्ष दुनिया के विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं। इसके अन्य नामों में बन्नी ट्री/वन्नी मराम/बन्नी मारा (कर्नाटक), खेजड़ी, जांट/जांटी, सांगरी (राजस्थान), जंड (पंजाबी), कांडी (सिंध), वण्णि (तमिल), शमी, सुमरी (गुजराती), घफ़ (संयुक्त अरब अमीरात) आदि होते हैं। इसका व्यापारिक नाम 'कांडी' है। अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस 'सिनेरेरिया (Prosopis cinerea) नाम से जाना जाता है।
खेजड़ी में जड़, पत्ते, फल, लकड़ी आदि वृक्ष का प्रत्येक भाग किसी न किसी काम में आता है। राजस्थान के 'राज्य वृक्ष' के रूप में इसकी मान्यता है। खेजड़ी के सभी भाग उपयोगी होने के कारण इसे 'रेगिस्तान का कल्पवृक्ष' कहा जाता है। इसे 'रेगिस्तान का राजा' और 'Wonder Tree' के रूप में भी जाना जाता है। यह क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक विकास का प्रतीक है। खेजड़ी वृक्ष में जल संरक्षण और भू-क्षरण रोधक क्षमता होती है। यह रेत में भी उग सकता है। यह एक सामाजिक रूप से पसंदीदा वृक्ष प्रजाति है और इसे रेगिस्तानी निवासियों की जीवन रेखा माना जाता है। इसके कई उपयोगों और प्रदान की गई सेवाओं के कारण, खेजड़ी सदियों से सबसे आम कृषि वानिकी प्रजाति रही है। पेड़ एक शीर्ष-फीड प्रजाति है जो पौष्टिक, अत्यधिक स्वादिष्ट हरा और साथ ही सूखा चारा प्रदान करता है जो ऊंट, मवेशी, भेड़ और बकरियों के लिए अत्यधिक पौष्टिक व उपयोगी है। पत्तियों का उच्च पोषक मूल्य होता है और स्थानीय रूप से इसे 'लूंग' कहा जाता है। खेजड़ी को काले हिरण, चिंकारा, नीलगाय और खरगोश जैसे शाकाहारी जंगली जानवरों द्वारा चारे के पेड़ के रूप में भी बहुत पसंद किया जाता है। यह एक ऐसा पेड़ है जो जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है । मधुमक्खियां न केवल फूलों के रस पर भोजन करती हैं बल्कि पेड़ों पर अपने छत्तों का निर्माण भी करती हैं। खेजड़ी के पेड़ पर चीटियों और भृंगों की कई प्रजातियों को जीवित देखा जा सकता है। बुनकर पक्षी उन पर अपना घोंसला बनाना पसंद करते हैं।
हाइब्रिड शमी (थार शोभा खेजड़ी)
“शमी का हाइब्रिड पौधा 'थार शोभा खेजड़ी' के नाम से जाना जाता है। थार शोभा किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है। हाइब्रिड शमी की खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है। थार शोभा खेजड़ी का पौधा एक साल में 3 से 4 फीट तक बढ़ता है। हाइब्रिड शमी को एक वर्ष तक देखभाल की आवश्यकता होती है। देशी शमी की तरह यह भी कम पानी में उगती है। एक वर्ष के बाद इसमें फल (सांगरी) आने लगते हैं। शमी में मार्च से जुलाई तक फल लगते है। इसकी पत्तियों को वर्ष में तीन बार लिया जा सकता है जो भेड़, बकरी, ऊंट आदि मवेशियों के लिए चारे के रूप में उपयोग किया जाता है। थार शोभा की बागवानी सांगरी, लुंग (चारा) के लिए की जाती है। हाइब्रिड रूप से तैयार शमी के पौध में रोग प्रतिरोधक क्षमता कई गुना ज्यादा होती है। प्राकृतिक रूप से बीज से उगने वाली खेजड़ी में आमतौर पर अच्छे किस्म की सांगरी केवल 15 - 20 प्रतिशत पेड़ो में ही पाई जाती है। क्योकि प्राकृतिक रूप से बीज से उगने के कारण इनमें काफी विविधता पाई जाती है। अन्य 80 प्रतिशत खेजड़ी लूंग, लकड़ी आदि की दृष्टि से उपयोगी होती हैं।”
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देशी खेजड़ी
देसी खेजड़ी प्राकृतिक रूप से उगती है। यह मध्यम आकार का वृक्ष है। देशी खेजड़ी की लम्बाई 40 से 50 फ़ीट तक होती है। इसमें कांटे होते है। 8 -10 साल बाद फल देती है। इसके पत्ते चारे के रूप में काम आते है , जिन्हे लूँग कहते है।