SK नर्सरी हाउस बीकानेर में भगवा अनार के पौधे व्यवसायिक कृषि के लिए थोक दर पर उपलब्ध है। इसका उपयोग खाने के रूप में, ज्यूस, चाॅकलेट, केक, जैली और सुखाकर किया जाता है अनार की खेती अधिक आय देती है।
भगवा अनार का रस स्वादिष्ट और औषधीय गुणों से भरपूर होता है। अनार उपोष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है। इसे शुष्क एंव अर्ध-शुष्क जलवायु में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है। फलों के विकास और पकने के समय गर्म और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। लंबे समय तक उच्च तापमान के संपर्क में रहने से फलों की मिठास बढ़ जाती है। भारत में अनार की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र में की जाती है। इसकी खेती राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, गुजरात में भी की जाती है।
सुपर भगवा अनार के फल बड़े आकार के होते है। फल मीठा रसदार एवं स्वादिश्ठ होते है। इस कारण बाजार में भाव अच्छे मिलते है। तीन साल बाद प्रति पौधा पैदावार 40-50 किग्रा प्रति पौधा हो जाती है। अनार रोपण का उत्तम समय जुलाई - अगस्त है। पौधे 12 गुना 12 फीट की दूरी से लगाना उचित रहता है। अनार को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। इसके लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। भारी मिट्टी की तुलना में हल्की मिट्टी में फलों की गुणवत्ता और रंग बेहतर होता है।
अधिक आय और उत्पादन के लिए पौधे को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस, मैंगनीज आदि तत्वों की आवश्यकता होती है। इसलिए विशेषज्ञों की देखरेख में अपनी खेती की तैयारी करवाएं और नियमित निरीक्षण करवाएं ताकि अच्छी उपज ली जा सके। सुपर भगवा अनार के बगीचे मे बूंद - बूंद सिंचाई पद्धति का उपयोग करना लाभदायक रहता है। एक सरकारी बीघा में 120 पौधे लगाए जा सकते है।
भगवा की किस्म के फलों का औसत वजन 200-300 ग्राम होता है। इस किस्म के फल बड़े आकार के, भगवा रंग के चिकने चमकदार होते हैं। फल आकर्षक लाल रंग और बीज मुलायम होते हैं। अच्छी देखभाल की स्थिति में प्रति पौधा 30 से 40 किग्रा. उपज प्राप्त की जा सकती है। अनार की पत्तियों गिरने के (लगभग 80-85%) बाद, पौधों के आयु के अनुसार जैविक खाद और नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश डालें। पकी हुई गोबर की खाद, नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग मृदा परीक्षण एवं पत्ती विश्लेषण के आधार पर करें। खाद और उर्वरकों का प्रयोग लगभग 8-10 सेमी. गहरी खाई बनाकर देना चाहिए।
अनार के पौधे सूखा सहिष्णु होते हैं। लेकिन अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई आवश्यक है। इस के लिए सिंचाई मई से शुरू करके मानसून आने तक नियमित रूप से करना चाहिए। वर्षा ऋतु के बाद फलों के अच्छे विकास के लिए 10-12 दिनों के अंतराल पर नियमित सिंचाई करनी चाहिए। अनार के लिए ड्रिप सिंचाई उपयोगी सिद्ध हुई है। इसमें पानी की बचत के साथ-साथ उपज में 30-35 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई है।