SK नर्सरी हाउस बीकानेर में केर के पौधे थोक दर पर उपलब्ध है। एक पर्णपाती, झाड़ीदार पौधा है जो घने गुच्छों में उगता है। यह झाड़ीदार केर का पौधा 4 - 5 मीटर ऊँचा होता है। बहुत अधिक सयम बाद यह कभी-कभी एक छोटा पेड़ बन जाता हैं जिसमें स्पष्ट रूप से पत्ती रहित कई शाखाएँ होती हैं।
केर के अलग-अलग नाम है जैसे राजस्थान में इसे आम तौर पर कैर, टिंट, केर, केरिया कहा जाता है जबकि हरियाणा में इसे टीनट या डेला के नाम से जाना जाता है। केर के कुछ और नाम भी है जिनके द्वारा ये जाना जाता है जैसे कैपर, करयाल, हनबैग, कैरी, करीरा, करील, छोटी बेरी आदि जबकि अंग्रेजी में इसे कैपर बेरी के नाम से जाना जाता है। कैर वानस्पतिक नाम Capparis decidua (कप्पारिस डिकिडुआ) है। यह भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण अफ्रीका और सऊदी अरब के रेगिस्तानी और शुष्क क्षेत्रों के साथ अरब प्रायद्वीप, मिस्र, ईरान, भारत, जॉर्डन, सेनेगल, सोमालिया, सूडान, पाकिस्तान, चाड, मिस्र, इथियोपिया, नाइजर, नाइजीरिया में भी पाया जाता है। भारत में यह लगभग हर जगह उत्तर पश्चिमी राजस्थान, मध्य भारत, पंजाब, गुजरात के शुष्क स्थानों में पाया जाता है।
केर/करील यह एक प्रसिद्ध काँटेदार झाँड़ी है जिसमें पत्ते नहीं होते। यह रेतीली, कंकरीली व बंजर भूमि में उगने वाली झाड़ी है। केर के पौधे लाल रंग के फूल आते हैं। इसमें एक साल में दो बार फल लगते है, मई और अक्टूबर माह में। केर के पक्के और कच्चे दोनों तरह के फल खाए जाते हैं। इसके कच्चे फल हरे रंग के होते है, जिनका प्रयोग सब्जी, केर की करी और आचार बनाने में किया जाता है। हरा, कच्चा व छोटो आकर का केर फल लोकप्रिय "पंचकूट" सब्जी का मुख्य घटक है जो राजस्थान में बहुत प्रचलित हैं। इसके सब्जी और आचार अत्यन्त स्वादिष्ट होते हैं। केर के कच्चे हरे फ़ल को सुखाकर उनका अधिक समय तक उपयोग किया जाता हैं। कैर के पक्के हुए फल लाल रंग के, मीठे व गूदेदार होते है जो खाने के काम आते हैं। इन्हे राजस्थान में स्थानीय भाषा ढालु कहते हैं। बेरी के आकार के कच्चे फल कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और खनिजों से भरपूर होते हैं। मसाले के रूप में, छोटी बेरी, केर का उपयोग लगभग 5,000 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं।
केर का पौधा गर्म क्षेत्रों में सबसे अच्छा बढ़ता है। यह 5 से 50°c तक तापमान सहन कर सकता है। यह कम पानी व कम वर्षा में भी फलता-फूलता हैं। इसे के लिए 300 - 600 मिमी की औसत वार्षिक वर्षा उत्तम है। इससे कम 150 मिमी तथा अधिक वर्षा 800 मिमी तक भी सहन कर सकता हैं। केर को कम से कम 6 -7 घंटे धुप की आवश्कता होती हैं। केर सभी प्रकार की मिटटी में हो जाता हैं। मुख्य रूप से क्षारीय, रेतीली और बजरी वाली मिट्टी में सफलता से होता है, उथली, कठोर मिट्टी और पथरीली मिट्टी में भी फलता-फूलता है। 6.5 - 8.5 की सीमा में पीएच को सहन करता है। शुष्क परिस्थितियों में इसके उत्कृष्ट अनुकूलन के कारण यह पौधा लंबे समय तक सूखे को सहन कर सकता है।
केर एक प्रकार की मरुस्थलीय झड़ी नुमा पौधा हैं, अधिकतर यह झाड़ी रूप में ही मिलता है। कुछ वर्षो पश्चात यह एक मध्यम या छोटे आकार के पेड़ का रूप ले लेता है। यह पेड़ प्राय: 5 मीटर से बड़ा नहीं पाया जाता है। यह प्राय: सूखे क्षेत्रों में पाया जाता है। केर के पौधे पर बहुत छोटी पत्तियाँ होती हैं, और ये केवल कम बारिश के मौसम में ही दिखाई देती हैं। केर के झाड़ी में शुष्क मौसम की शुरुआत में मार्च-अप्रैल माह में पुष्प लगने शरू होते है। फूलों की कलियाँ को पकाकर और अचार के रूप में खाया जाता है। बच्चे फूलों का रस चूसकर आनंद लेते हैं। फल की उपज लगभग 20 किलो प्रति झाड़ी हो सकती है। केर के पौधों का जीवन काल लगभग 40 - 50 वर्ष माना गया है।
कैर का वृक्ष सूखा प्रतिरोधी है। इसमें विपरीत परिस्थियों में, सूखे वातावरण में, अत्यधिक कम पानी में भी जीवित रहने की विलक्क्षण क्षमता होती है। यह प्रजाति शुष्क क्षेत्रों में विशेष रूप से उपयोगी हो सकती है, विशेषकर मरुस्थल के विस्तार को रोकने में सहायक है। थार रेगिस्तान में अत्यधिक गर्मी के महीनों के दौरान जब तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है तो पौधे न केवल जीवित रहते हैं बल्कि फूलते और फल भी लगते हैं। कैर के फल के अलावा इसके फूल, छाल और जड़ों का इस्तेमाल औषधि बनाने के लिए किया जाता है। इसकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है, इसलिए इसका उपयोग कृषि यंत्र बनाने में किया जाता है।
केर एक कांटेदार, बहुत शाखाओं वाली, हरी टहनी दिखने वाली झाड़ी या छोटा पेड़ सामूहिक रूप से बढ़ता है। नई शाखाएँ व टहनियाँ विशेष रूप से बकरियों और ऊँटों के लिए चारे का काम करती हैं। केर पर पत्तियाँ छोटी कड़वी, रसीली होती हैं। ये बहुत ही काम समय के लिए (अधिकतम एक महीने के लिए) नए अंकुरों पर दिखाई देती हैं जो बाद में वाष्पोत्सर्जन को कम करने के लिए कांटों में बदल जाती हैं। केर की झाड़ियों की रोपण के तुरंत बाद से लेकर पहले दो वर्षों तक सिंचाई की आवश्यक होती है। बरसात के मौसम को छोड़कर, सर्दियों में 15 दिनों के अंतराल पर और गर्मियों में 7-10 दिनों के अंतराल पर दो साल तक सिंचाई की जा सकती है। 2 वर्ष के बाद पौधा प्राकृतिक रूप से वर्षा पर आधारित हो कर अपने आप ग्रो कर सकता है।
6-7 साल पुरानी झड़ी पर 3-5 किलो केर लगते है। जबकि इस पुराने पौधे से 12-15 किग्रा तक फल मिल सकते हैं। एक हेक्टेयर में 400 पौधे लगाए जा सकते हैं, जिनसे 45 से 60 क्विंटल तक उपज मिल सकती है। कच्चे फल 100 से 150 रुपये प्रति किलो बिकते हैं, जबकि सुखाने या अन्य उत्पाद बनाने के बाद 800 से 1200 रुपये प्रति किलो बिकते हैं। 100 ग्राम केर में पोषण मूल्य 2009 में प्रकाशित जर्नल ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री की एक रिपोर्ट के अनुसार - 41.6 किलो कैलोरी, 8.6g प्रोटीन, 1.8g कार्ब, 12.3g फाइबर, 7.81mg विटामिन सी, 55mg कैल्शियम, 57mg फास्फोरस आदि होते है।
राजस्थान के बीकानेर और जोधपुर जिलों में 7,000 टन से अधिक केर फलों का उत्पादन होता है। केर झाड़ियाँ साल में दो से तीन बार फल दे सकती है। सबसे अधिक व सबसे अच्छे फल वर्ष के सबसे शुष्क समय मार्च से अप्रैल तक मिलते है, जिनकी बाजार में माँग सर्वाधिक रहती है। इसके बाद फिर मई से जुलाई तक फल देती हैं। ये बारिश के समय होने के कारण पूर्ण रूप से उत्तम नहीं होते है। यदि झाड़ी तीसरी बार फल देती है, तो यह अक्टूबर से नवंबर तक होगा। सर्दियों की फसलों के फल काफी खराब गुणवत्ता वाले होते हैं। छोटे आकर के केर सर्वाधिक उपयुक्त और स्वादिष्ट होते हैं। कच्ची अवस्था में केर बेरीज सबसे कोमल और रसीले होते हैं। इन छोटे-छोटे फलों की बाजार में काफी अधिक कीमत मिलती है।